भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पाताल की रातें / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र सिंह काफ़िर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> वो हि…)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:21, 17 मई 2010 के समय का अवतरण

वो हिज्र कि रातें वो विसाल कि रातें
रोज़ की तरह तन्हा-ऐ-हाल कि रातें

डूब जाएँ या फिर, बह जाएँ ये कहीं
ना मिले इस तरह की बवाल की रातें

चाँद जा गिरा है कहीं दरिये में किसी
बेनूर-सी ये, फिजूल कमाल की रातें

हुआ मैं बेकल मिरी उलझनों में यारो
कहाँ से लाऊँ अब, एतिदाल की रातें

हर शय अब खुद ही खेलता है काफ़िर
कहाँ आसमा कहाँ ये पाताल की रातें