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"फुरसत से घर में आना तुम / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर

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23:54, 31 मार्च 2007 का अवतरण

रचनाकार: भावना कुँवर

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फुरसत से घर में आना तुम

और आके फिर ना जाना तुम ।


मन तितली बनकर डोल रहा

बन फूल वहीं बस जाना तुम ।


अधरों में अब है प्यास जगी

बनके झरना बह जाना तुम ।


बेरंग हुए इन हाथों में

बनके मेंहदी रच जाना तुम ।


नैनों में है जो सूनापन

बन के काज़ल सज जाना तुम।