भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सब्जी-मण्डी / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> देखो-दे…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:02, 31 मई 2010 के समय का अवतरण
देखो-देखो सब्ज़ी-मण्डी,
बिकते आलू,बैंगन,भिण्डी ।
कच्चे केले, पक्के केले,
मटर, टमाटर के हैं ठेले ।
गोभी,पालक,मिर्च हरी है,
धनिये से टोकरी भरी है ।
लौकी, तोरी और परबल हैं,
पीले-पीले सीताफल हैं ।
अचरज में है जनता सारी,
सब्जी-मण्डी कितनी प्यारी।