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"बीती विभावरी जाग री / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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तारा घट ऊषा नागरी। | तारा घट ऊषा नागरी। | ||
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किसलय का अंचल डोल रहा | किसलय का अंचल डोल रहा | ||
लो यह लतिका भी भर लाई | लो यह लतिका भी भर लाई |
06:12, 10 सितम्बर 2010 का अवतरण
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आवाज़: अज्ञात |
बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।
खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिये
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।