भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जौहर / श्यामनारायण पाण्डेय / युद्ध / पृष्ठ २" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=श्यामनारायण पाण्डेय
 
|रचनाकार=श्यामनारायण पाण्डेय
 +
|संग्रह=जौहर / श्यामनारायण पाण्डेय
 
}}
 
}}
 
{{KKPageNavigation
 
{{KKPageNavigation
पंक्ति 29: पंक्ति 30:
 
कट गया सवार गिरा भू पर,
 
कट गया सवार गिरा भू पर,
 
घोड़ा गिरकर दो टूक हुआ॥
 
घोड़ा गिरकर दो टूक हुआ॥
 +
 +
क्षण हाथी से हाथी का रण,
 +
क्षन घोड़ों से घोड़ों का रण।
 +
हथियार हाथ से छूट गिरे,
 +
क्षण कोड़ों से कोड़ों का रण॥
 +
 +
क्षण भर ललकारों का संगर,
 +
क्षण भर किलकारों का संगर।
 +
क्षण भर हुंकारों का संगर,
 +
क्षण भर हथियारों का संगर॥
  
  
  
 
</poem>
 
</poem>

19:58, 15 सितम्बर 2010 का अवतरण

तलवार गिरी वैरी - शिर पर,
धड़ से शिर गिरा अलग जाकर।
गिर पड़ा वहीं धड़, असि का जब
भिन गया गरल रग रग जाकर॥

गज से घोड़े पर कूद पड़ा,
कोई बरछे की नोक तान।
कटि टूट गई, काठी टूटी,
पड़ गया वहीं घोड़ा उतान॥

गज - दल के गिर हौदे टूटे,
हय - दल के भी मस्तक फूटे।
बरछों ने गोभ दिए, छर छर
शोणित के फौवारे छूटे॥

लड़ते सवार पर लहराकर
खर असि का लक्ष्य अचूक हुआ।
कट गया सवार गिरा भू पर,
घोड़ा गिरकर दो टूक हुआ॥

क्षण हाथी से हाथी का रण,
क्षन घोड़ों से घोड़ों का रण।
हथियार हाथ से छूट गिरे,
क्षण कोड़ों से कोड़ों का रण॥

क्षण भर ललकारों का संगर,
क्षण भर किलकारों का संगर।
क्षण भर हुंकारों का संगर,
क्षण भर हथियारों का संगर॥