भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक खास काम कर रहा है आम आदमी / शेरजंग गर्ग" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेरजंग गर्ग |संग्रह=क्या हो गया कबीरों को / शेरज…)
 
(कोई अंतर नहीं)

05:53, 18 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

एक खास काम कर रहा है आम आदमी।
हर खासियत से डर रहा है आम आदमी।

पाताल में समा रहा है खास आदमी,
फुटपाथ पर उभर रहा है आम आदमी।

जिस दौर में होती है तवारीख़ सुर्ख़रू,
उस दौर से गुज़र रहा है आम आदमी।

सपने लहूलुहान हैं, आँसू हैं बेज़ुबान,
पर दर्द से मुकर रहा है आम आदमी।

ज़िन्दा है बड़ी शान से ज़िन्दा ही रहेगा,
किसने कहा कि मर रहा है आम आदमी।