भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हित्या रौ उच्छब / अर्जुनदेव चारण

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:44, 15 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ देख
जाजम माथै बैठौ है
थारौ हित्यारौ

अमल री किरची लेय
थारै त्याग री
कथा बखांणतौ
आखी बस्ती नै
मनवार कर कर
जीमावै है पांचूं पकवान
इणरै वास्तै तौ
थारौ जावणौ
खुद रै रूतबै री
ओळखांण रौ
एक जळसौ है

आपरी हित्या रौ
ओ उच्छब तौ
देखती जा मां