भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तत्व / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:47, 4 अगस्त 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आम के टिकोलों की तरह
आशायें
चटनी की तरह
विवशताओं के दिन
सेनुरिया रंगों में रंगी
पगी
बम्बइया उमंगें
पीली-पीली
पकी-पकी
भरी-भरी फलियाँ
अमौट-सी बनी आस्था
सरस-संग्रह!
आँधी आने दो
टिकोले सामना करेंगे
जिनकी टहनियाँ कमजोर होंगी
टूटेंगी
जो प्रबल होंगी-जीयेंगी
आशाएँ कोमल पत्र नहीं होतीं
विश्वास बूढ़ा नहीं होता
आस्था जवान रहती है।