भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस चमन में अब सुकूँ मिलता नहीं / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:41, 13 नवम्बर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस चमन में अब सुकूँ मिलता नहीं
क्या कमी है, दिल मगर लगता नहीं

पेड़ हैं इतने हमारे बाग़ में
एक पत्ता भी मगर हिलता नहीं

यार कहते हो सेहत का ध्यान रक्खूँ
स्वच्छ पानी तक तो है मिलता नहीं

फूँक दे कब , कौन मेरी झोपड़ी
नींद में भी बेख़बर रहता नहीं

बेवज़ह दुनिया को समझाने चला
मेरा बेटा ही मुझे सुनता नहीं

लाख यारो मुश्किलें हों सामने
ज़ुल्म के आगे कभी झुकता नहीं

तुम भला समझोगे कब इस बात को
करने वाला करता है , कहता नहीं