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अनुभव / शलभ श्रीराम सिंह
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अनुभव की आँखें
सब कुछ देख लेती है
वह भी जो नहीं दिखाना चाहते है लोग।
अनुभव की उँगलियाँ
वह तक छू लेती हैं
जिसे सबसे ज़्यादा छुपाना चाहते हैं लोग
अनुभव की जीभ
जीभ के क्वाँरे स्वाद को पहचानती हैं।
अनुभव के अंग
जानते हैं अनुभवी अंगो की भाषा
अनुभव से
कुछ भी नहीं छिपाया जा सकता
छिपता नहीं है अनुभव से कुछ भी
नंगा है हर झूठ अनुभव के आगे
अनुभव के आगे नंगी है हर सच्चाई।
रचनाकाल : 1992 साबरमती एक्सप्रेस