भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ ऐसे साज़ को हमने बजाके छोड़ दिया / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:50, 23 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= सौ गुलाब खिले / गुलाब खं…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कुछ ऐसे साज को हमने बजाके छोड़ दिया
सुरों को और सुरीला बनाके छोड़ दिया

मिलन की प्यास को इतना बढ़ाके छोड़ दिया
कृपा की डोर को छोटा बना के छोड़ दिया

तड़प के आ गयी मंजिल हमारे पाँव के पास
लगन को इतनी बुलंदी पे लाके छोड़ दिया

बहुत-से ऐसे भी जीवन में आ चुके हैं मोड़
जब उनके नाम को होठों पे लाके छोड़ दिया

लहर हैं वह जिसे कोई भी किनारा न मिला
वो धुन हैं हम जिसे कोयल ने गाके छोड़ दिया

गुलाब, ऐसे ही खिलते है हम किसीने ज्यों
दिया जला के मुकाबिल हवा के छोड़ दिया