भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मौसम के रंग / नीरजा हेमेन्द्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:00, 29 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरजा हेमेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूसर भूमि
सूख कर पीली पड़ चुकी घास
क्वार की युवा धूप में
सिहरन भरी हवाओं का स्पर्श
लुप्तप्राय घास से चहक उठी हैं
उम्मीद की नन्हीं कोंपले
कार्तिक माह
भोर की निस्तब्ध बेला में
ओस की नन्हीं मोतियों से कर श्रृंगार
नन्हीं कोपलें चहक उठी हैं
दूर-दूर तक विस्तृत धान के खेतों में
लहलहा उठी हैं हरी बालियाँ
महक-महक उठा है हवाओं का वजूद
कोहरे का झीना आवरण
असमर्थ हो रहा है सृश्टि के सौन्दर्य को ढँकने में
गुनगुनी धूप के संसर्ग से
सुनहरी होने लगी हैं धान की बालियाँ
पकने लगे हैं स्वप्न
धान की गाँछों भरे खलिहान
अगहन के सर्द दिनों मे
गरमाहट से भरने लगे हैं
नये चावल की भीनी महक से
लहक-महक उठी है गाँव की हवायें
धान के सुनहरे दानों से
भर गयी हैं डेहरियाँ
स्वर्णिम नवगाछ की पुआल
बन जायेंगी गर्म बिछौने
पूस की ठंड रातों में / इन दिनों।