भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चम्बा की धूप / कुमार विकल
Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:45, 2 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विकल |संग्रह= एक छोटी-सी लड़ाई / कुमार विकल }} ठहरो ...)
ठहरो भाई,
धूप अभी आयेगी
इतने आतुर क्यों हो
आख़िर यह चम्बा की धूप है—
एक पहाड़ी गाय—
आराम से आयेगी.
यहीं कहीं चौग़ान में घास चरेगी
गद्दी महिलाओं के संग सुस्तायेगी
किलकारी भरते बच्चों के संग खेलेगी
रावी के पानी में तिर जायेगी.
और खेल कूद के बाद
यह सूरज की भूखी बिटिया
आटे के पेड़े लेने को
हर घर का चूल्हा —चौखट चूमेगी.
और अचानक थककर
दूध बेचकर लौट रहे
गुज्जर— परिवारों के संग,
अपनी छोटी —सी पीठ पर
अँधेरे का बोझ उठाये,
उधर—
जिधर से उतरी थी—
चढ़ जायेगी—
यह चम्बा की धूप—
पहाड़ी गाय.