भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये ज़िन्दगी / निदा फ़ाज़ली

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:35, 18 अक्टूबर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शायर: निदा फ़ाज़ली

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

ये ज़िन्दगी
आज जो तुम्हारे
बदन की छोटी-बड़ी नसों में
मचल रही है
तुम्हारे पैरों से चल रही है
तुम्हारी आवाज़ में ग़ले से निकल रही है
तुम्हारे लफ़्ज़ों में ढल रही है


ये ज़िन्दगी
जाने कितनी सदियों से
यूँ ही शक्लें
बदल रही है


बदलती शक्लों
बदलते जिस्मों में
चलता-फिरता ये इक शरारा
जो इस घड़ी
नाम है तुम्हारा
इसी से सारी चहल-पहल है
इसी से रोशन है हर नज़ारा


सितारे तोड़ो या घर बसाओ
क़लम उठाओ या सर झुकाओ


तुम्हारी आँखों की रोशनी तक
है खेल सारा


ये खेल होगा नहीं दुबारा
ये खेल होगा नहीं दुबारा