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फुरसत से घर में आना तुम / भावना कुँअर

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रचनाकार: भावना कुँअर

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फुरसत से घर में आना तुम

और आके फिर ना जाना तुम ।


मन तितली बनकर डोल रहा

बन फूल वहीं बस जाना तुम ।


अधरों में अब है प्यास जगी

बन झरना अब बह जाना तुम ।


बेरंग हुए इन हाथों में

बन मेहदी अब रच जाना तुम ।


पैरों में है जो सूनापन

महावर बन के सज जाना तुम