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नामविश्वास / तुलसीदास/ पृष्ठ 2

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नामविश्वास-2

(67)

ऊँचो मनु, ऊँचो रूचि, भागु नीचो निपट है।
लोकरीति -लायक न , लंगर लबारू है।

 स्वारथु अगमु परमारथकी कहा चली,
पेटकीं कठिन जगु जीवको जवारू है।।

 चाकरी न आकरी , न खेती, न बनिज-भीख,
 जानत न कूर कछु किसब कबारू है।

तुलसी की बाजी राखी रामहींके नाम , नतु ,
 भेंट पितरन को न मूड़हू में बारू है।।

(68)

अपत -उतार , अपकारको अगारू ,
 जग, जाकी छाँह छुएँ सहमत ब्याध-बाघको।

पातक-पुहुमि पालिबेको सहसाननु सो,
काननु कपटको , पयोधि अपराधको।

तुलसी-से बामको भो दाहिनो दयानिधानु,
सुनत ललित-ललामु कियो लखानिको,
बड़ो क्रूर कायर कपूत-कौड़ी आधको।।