भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दो घड़ी की हँसी-ख़ुशी के लिए / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:15, 7 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= सौ गुलाब खिले / गुलाब खं…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


दो घड़ी की हँसी-ख़ुशी के लिए
हम हुए क़ैद ज़िन्दगी के लिए

वह तड़पने का खेल देखा करें
ज़िन्दगी हमको दी इसीके लिए

देवता हम नहीं, न पत्थर हैं
माफ़ कुछ तो है आदमी के लिए

कारवाँ उम्र का निकल भी गया
रह गए बैठे हम किसीके लिए

कब सुबह होगी, कब खिलेंगे गुलाब
दिल तड़पता है उस घड़ी के लिए