भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नाहीं नाहीं करै / सेनापति
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:57, 3 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सेनापति }} Category:पद <poem> नाहीं नाहीं ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
नाहीं नाहीं करै,थोडो माँगे सब दैन कहै,
मंगल को देखि पट देत बार बार है .
जिनके मिलत भली प्रापति की घटी होति,
सदा शुभ जनमन भावै निरधार है .
भोगी ह्वै रहत बिलसत अवनी के मध्य,
कन कन जोरै, दान पाठ परवार है.
सेनापति वचन की रचना निहारि देखौ,
दाता और सूम दोउ कीन्हें इकसार है.