भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धान / मनोज कुमार झा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:30, 26 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज कुमार झा }} {{KKCatKavita}} <poem> कमजोर दिख...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

कमजोर दिखता यह पौधा न तेज धूप से डरता है
                        न कमरतोड़ पानी से
चाहिए इसे बस पत्ते भर धूप और जरूरत भर पानी
डूबा हो कंठ तो भी न सोखेगा एक बूँद ज्यादा
बाँट लेगा हर एक बराबर-बराबर ।
जरा सी हड़बड़ी नहीं खलिहान पहुँचने की
सातवें फूल तक करता है इंतजार गभाने के लिए
एक दे देता है जगह दूसरे को फैलने के लिए
कितना मुश्किल यह ऐसे समय में
जब कन्याभ्रूण से छीनते हैं माता-पिता गर्भाशय का पवित्र कोना
बरजोरी किसी पुरुषभ्रूण के लिए।

हीरा सदा के लिए उपजता यह 'गिरहथ' के खेत में
मेरे लिए पोखर किनारे दसकठवा में
       और शासकों के लिए तो बस यूँ ही, उपज जाता है
और पहुँच जाता है प्लेट में, पुलाव बनकर।