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पै‘लापै‘ल (4) / सत्यप्रकाश जोशी

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आज जमना रै सगळै कांकड़
डांडी रै माथै
मुळकती मिमजरियां
जांणै म्हारी मांग रौ चितरांम।

पण पै‘लापै‘ल
म्हारी मांग सजावण नै
अमर सुहाग रै खातर
थूं मिमजरियां रा मोती लायौ,
तद म्हैं छळगारी लाज रै फरमांण,
माथौ ऊंचो कर लीनौ ;
डांडी डांडी मिमजरियां रळगी,
कांकड़-कांकड़ मोती रळग्या।