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ज़हर / शशि सहगल

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बारिश की तेज़ बौछार से
भीगते मकान
डरे से दिखते हैं
पेड़ों की अधोमुखी डालियाँ
शीश झुकाये

धरती देख रही है।
भय फैल गया है उनकी शिराओं में
क्योंकि
बारिश थमते ही
फिर से पीना होगा ज़हर
धुएँ का
इसीलिए पेड़ आज
झूमना भूल गया है
मानो
धुएँ का साँप
उसे डस गया है।