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हमसे खिंचत न गगरिया कमर मोरी छल्ला मुन्दरिया / अवधी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हमसे खिंचत न गगरिया कमर मोरी छल्ला मुन्दरिया

वोहि सासू मोरी जनम की बैरनि,
दुई-दुई भरावें गगरिया, कमर मोरी छल्ला मुन्दरिया

वोहि देवरा मोरे बचपन का साथी
काँधे टेकावै गगरिया मोरी छल्ला मुन्दरिया

अंटा चढ़े उइ सैयां जो देखैं,
कहैं इक-इक उठावो गगरिया, कमर तोरी छल्ला मुन्दरिया

जो सैयां हमें इतना चाहत हो,
भोरै लगावौ कहरिया, कमर मोरी छल्ला मुन्दरिया