भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इंतजार / लक्ष्मीकान्त मुकुल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:52, 29 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीकान्त मुकुल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
थका-हारा आदमी
जब भी कभी भारी टोकरी लादे
समीप आने लगता
उसे देखकर न जाने क्यों
घरघराने लगता है
बांस का पुल
मेरे गांव का।