भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वीकारोक्ति / धनन्जय मिश्र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:52, 10 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धनन्जय मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=पु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हों
हमरा सूली पर चढ़ाय दे
कैन्हें कि हम्में
मरत्हैं रहलोॅ छियै
ऊ दीन-हीन वास्तें
जे आपनोॅ भाग्य से
टूटी केॅ
खोय चुकलोॅ छेलै
आपने आत्मविश्वास
जेकरोॅ आगू
खाली एक टा
भावशून्य भविष्य छेलै
सुन्नोॅ आकाश छेलै
जेकरा में
नै दिखावै छेलै
वै सिनी केॅ
आपनोॅ कोय रंग-रूप
अन्हारे-अन्हार छेलै
सब के आँखी के आगू
कैन्हेंकि
कोय पोती देलेॅ छेलै
सुरुज पर
कोलतार
कारोॅ कजरोटी के कारिख
जिनगी के एक-एक पल
जै सिनी लेॅ छेलै पहाड़।
हों
हम्में ऊ पहाड़ खोदी केॅ
बनैलेॅ छियै समतल
वही सिनी लेॅ
हों
हमरा सूली पर
चढ़ाय देॅ
कैन्हें कि हम्में
वै सिनी केॅ
बताय देलेॅ छियै
हौं सुरंग
जहाँ वै सिनी के भाग्य
बंद छै।