भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाटक:तीन / शरद कोकास

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:41, 30 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद कोकास |अनुवादक= |संग्रह=हमसे त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाँ दर्द था उनकी आवाज़ में
शताब्दियों का दर्द
भरत मुनि और कालिदास को याद करते हुए
कहा उन्होंने

नाटक खेलने और
मरम्मत की दुकान खोलने में
अब कोई फ़र्क नहीं रहा
हर कोई नया कलाकार
दो चार नाटक खेलकर
बन जाता है निर्देशक
बना लेता है अपनी टोली

उतारता है
नये पट्ठों को अखाड़े में
सिखाता है अपने सीखे हुए सबक
करता है जोड़-तोड़ जीतने के लिए स्पर्धा में
बैठता है समीकरण पुरस्कारों के लिए
फिर वह
नाटक कतई नहीं खेलता
कहा उन्होंने।

-1993