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महफ़िल / हरि दिलगीर

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केतिरा था अचनि मिलण मूं सां,
मुंहिंजे घरि रोज़ रोज़ महफ़िल आहि;
आउं कंहिं ॾे मिलण जे लाइ वञां,
को न मूं वास्ते ज़रूरी आहि;
मुंहिंजे घरि रोॼु नाचु मीरा जो,
गीत ॻाइनि था सूरदास कबीर,
वाल्ट विटमैन, खलील ऐं ख़य्याम,
शाह, टैगोर ऐं सचूअ पारा,
कोठ मुंहिंजीअ ते झटि कही था अचनि,
ख़ूब ख़ुशबू ॾई ख़यालनि जी,
मुंहिंजे स्वासनि में था भरिनि सुरहाणि,
आउं कंहिं बटि भला वञां छाकाणि।

(हिन कविता में शाइरनि जा नाला - मीरा, सूरदास, कबीर ऐं टैगोर, रवींद्रनाथ ठाकुर, भारत; वाल्ट विटमैन, अमेरिका; खलील जबरां, लेबनान; उमर ख़य्याम, ईरान; शाह लतीफ़ ऐं सचल सरमस्त, सिन्ध)