भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शाबास / मुकेश तिलोकाणी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:41, 6 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश तिलोकाणी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शाबास आ
तुंहिंजे जीअण खे
सेखारे थो
तुंहिंजो, बे मयारी रोबु।
तूं...
किनीअ मछीअ वांगुरु
उछिलिजी पियल
किनारे ते
सड़ीं सुकीं पई।
हू, कारो कांऊ
मज़ो माणे रहियो आहे
तुंहिंजे सीने ते वेही
तुंहिंजो स्वादु
वेठो माणे।
उन में तूं बि खु़शि
हू बि खु़शि
पर शाबास आ
मूं तरफां
तुंहिंजे जोभन
जवानीअ खे।