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टोक / मुकेश तिलोकाणी
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मुंहिंजी टोक
अव्हां लाइ
नओं मोडु, सही राह।
दिल में न कजो
शींह जी गज़गोड़ खां
कुते जी भौंक भली।
बादशाह जे भूंडे खां
माउ जी, चमाट भली।
आऊं नथो चाहियां
अव्हां पेचरनि ते
पेर फटायो
मुंहिंजो चवणु
सिधी राह
बिना तक़लीफ़ जे
हासिलाति
सही राह
नईं मंज़िल।