भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टाईम पास / मुकेश तिलोकाणी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:53, 6 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश तिलोकाणी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हिन मइख़ाने जो
थधो नशो
ॿीणो करे
जीउ आज़ारु।
सुबुह शाम
ॾींहुं राति
मस्ती महिफिल
खि़ल चरिचो
कॾहिं-कॾहिं
घुट सू/साट।
इहो, कहिड़ो मज़ो?
छा जो आनंद?
बसि, डुकंदड़ि वक़्त
जीअंदड़ माण्हूं
टाईम पास।