भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुलमोहर ने... / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:41, 15 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देखो, देखो! देखो, देखो!
देखो, सारा आँगन,
गुलमोहर ने फूलों से
भर दिया हमारा आँगन।
यह आँगन, जो पड़ा हुआ था
सूखा-सूखा और मुरझाया,
उस पर गुलमोहर क्या फूला
कर दी मखमल-सी काया।
अम्माँ ने अब नाम दिया
इसको ‘फुलकारा आँगन’।
एक मौसम ने धूल उड़ाई,
एक ने छलकाई गगरी,
एक मौसम ने रंग भर दिए
जैसे जादू की नगरी,
ऐसे जादूगर मौसम से
हरदम हारा आँगन।