भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घोड़ागाड़ी / श्रीप्रसाद

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:25, 20 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=मेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तीन कुर्सियाँ आगे रक्खीं
पीछे रक्खी एक, हमारी घोड़ागाड़ी
पीछे की कुर्सी पर बैठे
दादा लाटी टेक, हमारी घोड़ागाड़ी

तीनों घोड़े चले दौड़कर
सरपट चलते चाल, हमारी घोड़ागाड़ी
चट से नानी के घर पहुँचे
कैसा किया कमाल, हमारी घोड़ागाड़ी

नानी के घर रुके एक दिन
फिर पहुँचे जालौन, हमारी घोड़गाड़ी
इतनी जल्दी चलती है यह
करे सामना कौन, हमारी घोड़ागाड़ी

गाड़ी में हम सब बैठे हैं
गाते जाते गीत, हमारी घोड़गाड़ी
इधर-उधर में इसी तरह से
गये तीन दिन बीत, हमारी घोड़गाड़ी

घूमघामकर घर पर आये
खतम हो गया खेल, हमारी घोड़गाड़ी
इस गाड़ी के आगे चलती
सीटी देकर रेल, हमारी घोड़ागाड़ी

कुर्सी अपनी जगह लगा दें
और करें कुछ काम, हमारी घोड़ागाड़ी
कल फिर यही खेल खेलेंगे
आ जाना कल शाम, हमारी घोड़गाड़ी।