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संवाद / विष्णुचन्द्र शर्मा
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उजले फूल दुकान के
थके से लगे मुझे।
मैंने पूछा खुद से: ‘गुलाबी फूल कहीं बंद हैं तुम्हारे भीतर!’
क्या तुम्हारा किशोर खो गया है पारी में
दुकान में सजे फूल
चुपचाप सोचते हैं: रंग पर, ताज़गी पर, उमंग पर
तुम क्या खो चुके हो पारी में।