भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सभ्यता / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:17, 17 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णुचन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैट्रो से देखा था पारी को
उसने मेरी पकी दाढ़ी देखी
और अपनी सीट से उठकर कहा:
यह सीट नीची है बैठ जाएँ वहाँ!
मैं उसकी सभ्यता का कद देखता रहा पारी में।