भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थिरकते पुतले / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:24, 17 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णुचन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
राजस्थान के ये पुतले
कब भाला रखकर ज़मीन पर
जंभाई लेंगे!
कब, हाथी पर बैठे राजकुमार
सड़क़ पर चलेंगे!
कब, घाघरा पहन गूजरी
मुँह फुलाए गणेश से कहेगी
‘आओ नाचो’।
थिरकते हुए पुतले
अब तोड़ रहे हैं ड्राइंगरूम का सन्नाटा
मैं सबके साथ हँस रहा हूँ...।