भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिंता / भास्कर चौधुरी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:01, 31 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भास्कर चौधुरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दिन के उजाले में
बंद कर भी दें अगर
कमरे की सारी खिड़कियाँ-
दरवाजे
चादर से मुंह ढाँप
करें उपक्रम सोने का
सोचें की
चिंताओं से कोई भी
महफ़ूज़ हैं आप
या कि
चिंताएँ सारी की सारी
ढांपते ही मुंह
परे हो जाती हैं आप से
तो आप ग़लत हैं
उजाले की तरह
चिंता भी
पा ही जाती हैं घुसने की जगह
कभी खिड़कियों में दरारों से
तो कभी
चादर में धागों की बुनावट के बीच
कहीं से...