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सन्नाटा / शिवशंकर मिश्र
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एक कोई सन्नाोटा
रात को बाँधता जाता हुआ
एक कोई सन्नाोटा
नींद को
लाँघता जाता हुआ
एक कोई सन्नाजटा गलियों में घूमता हुआ
एक कोई सन्नाजटा घर-घर कुछ ढूँढता हुआ
मैं इस सन्नाजटे में टूटता हुआ
एक कोई सन्नाजटा मुझ में ही
टूटता हुआ !