भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाज़ार-1 / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:51, 3 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पहले वे जरूरतें पैदा करते हैं
शुरू -शुरू में पूरी भी करते हैं जरूरतें
पर आदी बनते ही
तटस्थ हो जाते हैं
फिर रह जाता है आदमी
अभाव में छटपटाता