भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अनुनय / रामावतार यादव 'शक्र'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:47, 14 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामावतार यादव 'शक्र' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मुझ से रूठ छिपे हो जाकर दूर क्यों?
बने बदल कर जाने इतने क्रूर क्यों!
कहाँ तुम्हें मैं पाऊँ, पता न पा रहा!
जीवन उलझन में पड़कर घबरा रहा!
कुछ न सुहाता, लगा तुम्हीं में ध्यान है।
तुम से मिलने को आकुल यह प्राण है।
-1928 ई.