भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन वृन्दावन / अनन्या गौड़

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:02, 16 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनन्या गौड़ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सरल प्रेम जो महके तो मन वृन्दावन हो जाए
बरसे नेह की बरखा यह जग सावन हो जाए

बसा लो तुम हृदय में, यदि कृष्ण-सा मिले कोई
 यह मन तुम्हारा राधिका सम पावन हो जाए

 समझ लो बात अनकही, उनके भी मन की तुम
चहके फूलों की क्यारी, उपवन आँगन हो जाए

पहचान लें पर-पीर, जग होगा दुखों से दूर
 बिखरेगी ख़ुशी हर ओर जहाँ मनभावन हो जाए