भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कजली 3 / प्रेमघन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:06, 20 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहर नजर कै माला जेवर ओठ लाल गुलाल रामा।
हरी बाचउ काला बाबा बरतरवाला रे हरी॥टेक॥
गोरा चिट्टा चेहरा पर बालमक जाँद से आला।
हरी बाल नाग-सा काला घूँघर वाला रे हरी।
जहरीला जिउमार दिये बहु जालिम तिरछी टोपी रामा।
बना फिरहु आफत का परकाला रे हरी।
कठिन कठिन उज्जड़ करि गैलेन केतने जेकरे कारन रामा।
लदि गैलेन कितने डामल के सजा को रे हरी।