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कजली / 20 / प्रेमघन

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दूर
विकृत लय और छन्द
ललना

सुधि बुधि मोरो काहि बिसराये ललना-की चाल

छेड़ो छेड़ो न कन्हाई मैं पराई ललना॥
नोखे छैल भए तुमहीं, फिरी घूमत बनि दुखदाई ललना॥
इन चालन लालन अनेक, बस करि कलंक कुललाई ललना।
पिया प्रेमघन माधव, तुम, हठि करत हाय ठगहाई ललना॥

दूसरी

तोरी साँवरी सूरत लागै प्यारी जनियाँ॥
तोरी सब सज धज अति न्यारी जनियाँ॥
मतवारी अँखियन की चितवन सों जनु हनत कटारी ज।॥
मंद मंद मुसुकाय मोहनी मन्त्र मनहुँ पढ़ि डारी जनियाँ॥
मीठी बतियन मोहत मन सब सुध बुधि हरत हमारी ज।॥
मनहुँ प्रेमघन बरसत रस छबि भूलत नाहिं तिहारी ज।॥