भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ / गोपीकृष्ण 'गोपेश'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:51, 14 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपीकृष्ण 'गोपेश' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उषा ने सोने की थाली
लाकर मुझको अर्पित कर दी,
सन्ध्या ने तारों की झोली
लाकर मेरे कर में धर दी,
बस, और रूठकर बैठ गई
मेरी स्वप्निल दुनिया पगली !
सरिता ने लहरों के कर से
युग-युग मेरा आह्वान किया,
फूलों ने अपने शूलों से
मेरा सच्चा सम्मान किया,
कुछ आँक न पाया मैं क़ीमत
काँटे रोए, सरिता मचली !
जीवन ने सुख-दुख के कर से
मेरी बाहों को लिया जकड़,
दुख से मेरी हो गई प्रीति,
पा गया भेंट में श्वासें जड़ !
कल लोहित सन्ध्या के उर पर
कुछ राख उड़ी, कुछ चिता जली !