भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाना था रास्ते में अगर छोड़ कर मुझे / सुरेश चन्द्र शौक़

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:21, 20 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश चन्द्र शौक़ |संग्रह = आँच / सुरेश चन्द्र शौ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाना था रास्ते में अगर छोड़ कर मुझे

हमराह क्यों लिया था मिरे हमसफ़र मुझे


होने लगा है रोज़ ये रंगीन हादसा

मुड़—मुड़ के देखता है कोई देख कर मुझे


गुम हूँ न जाने कौन से आलम में इन दिनों

अपनी ख़बर है अब न तुम्हारी ख़बर मुझे


तुमने तो इत्तिफ़ाक़ से देखा था इस तरफ़

बरबाद कर गई है तुम्हारी नज़र मुझे


ऐ ‘शौक़’ पी थी उनकी निगाहों से एक दिन

महसूस हो रहा है अभी तक असर मुझे.