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समांतर / ऋचा दीपक कर्पे

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उम्मीदें तुमसे कुछ थी ही नही
तो नाउम्मीदी की कोई वजह भी नहीं
ना ही तुमने दिखाए ऐसे कुछ सपने
जिनके टूट जाने का डर हो!

ना मुझसे दूर हो तुम
ना पास हो,
लेकिन, इस वक्त मेरे साथ हो..
हमेशा रहोगे या नही
ऐसा कोई वादा तुमने किया नही है
और चले जाओगे छोड़कर
ऐसा मुझे लगता तो नही है

तुम आज हमसफ़र हो मेरे
चल रहे हैं हम
अपनी-अपनी धूप अपने रंग,
अपना आसमान साथ लिए
समांतर रेखाओं की तरह
यह जानते हुए कि
समांतर रेखाएं भी कभी मिली हैं कहीं!