भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौआ / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:05, 1 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> कौआ बहु…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कौआ बहुत सयाना होता ।
कर्कश इसका गाना होता ।।

पेड़ों की डाली पर रहता ।
सर्दी, गर्मी, वर्षा सहता ।।

कीड़े और मकोड़े खाता ।
सूखी रोटी भी खा जाता ।।

सड़े माँस पर यह ललचाता ।
काँव-काँव स्वर में चिल्लाता ।।

साफ़ सफ़ाई करता बेहतर ।
काला-कौआ होता मेहतर ।।