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कजली / 27 / प्रेमघन
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सुरत तोरी प्यारी रे सांवलिया॥
रंडियों की लय
कारी कजरारी मतवारी, आँख रतनारी रे साँवलिया॥
चितवत काम कटारी सरिस, हाय हनि मारी रे साँवलिया॥
बरसत रस मीठी मुसुकनि मोहनी डारी रे साँवलिया॥
रसिक प्रेमघन प्यारे यार! चाल तोरी न्यारी रे साँवलिया॥48॥