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नाटक:दो / शरद कोकास
Kavita Kosh से
एक से हाथ मिलाकर
उसने कहा हलो
दूसरे से मिला गले
लगाया एक कहकहा
बच्चे को उठाया गोद में
प्यार से चूमकर बढ़ गया आगे
भाभी जी से की नमस्ते
दोस्त की पीठ पर जमाई धौल
शिकायत के लहजे़ में पूछा
कहाँ रहते हो आजकल
वह कहता रहा कुछ न कुछ
इसलिए कि कहने को बहुत कुछ था
वह कहता रहा कुछ न कुछ
इसलिए कि कहने को कुछ नहीं था
कहते-कहते थक गया
बैठ गया मित्र के पास और कहने लगा
चर्चा में बने रहने के लिए
कितना नाटक करना पड़ता है।
-1993