जन्म | 22 नवम्बर 1950 |
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उपनाम | लावणी |
जन्म स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
फिर गा उठा प्रवासी - कविता संग्रह छप कर तैयार है | |
विविध | |
लावण्या शाह हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री हैं। | |
जीवन परिचय | |
लावण्या शाह / परिचय |
- श्री सीता ~ स्तुति / लावण्या शाह
- अबोध का बोध पाठ / लावण्या शाह
- यादें / लावण्या शाह
- संक्रमण : गुलमोहर के फूल! / लावण्या शाह
- अहम ब्रह्मास्मि / लावण्या शाह
- युति / लावण्या शाह
- सौगात / लावण्या शाह
- सपनों का संसार / लावण्या शाह
- उच्चैश्रेवा / लावण्या शाह
- श्वेत श्याम / लावण्या शाह
- बीती रात का सपना / लावण्या शाह
- दोपहर के अलसाये पल / लावण्या शाह
- समय! धीरे धीरे चल / लावण्या शाह
- जीवंत प्रकृति / लावण्या शाह
- चित्र -वीथी / लावण्या शाह
- हर कोई चाहता है / लावण्या शाह
- प्रणामांजलि / लावण्या शाह
- गुलमोहर की छाँव में / लावण्या शाह
- माँ, मुझे फिर जनो / लावण्या शाह
- वसंत तो आया है पर / लावण्या शाह
- दीपावली मंगलमय हो / लावण्या शाह
- व्यथा गीत / लावण्या शाह
- चाँदनी / लावण्या शाह
- स्वर्ण कलश / लावण्या शाह
- रे मन / लावण्या शाह
- दहलीज / लावण्या शाह
- रात कहती है कहानी / लावण्या शाह
- पाती एक अजानी / लावण्या शाह
- जब काली रात बहुत गहराती है/ लावण्या शाह
- स्मृति दीप / लावण्या शाह
- सन्दर्भ / लावण्या शाह
- इच्छा - मृत्यु / लावण्या शाह
इच्छा - अनिच्छा के द्वंद में धंसा , पिसा मन
धराशायी तन , दग्ध , कुटिल अग्नि - वृण से , छलनी , तेजस्वी सूर्य - सा , गंगा - पुत्र का , गिरा , देख रहे , कुरुक्षेत्र की रण- भूमि में , युधिष्ठिर! [ युधिष्ठिर] " हा तात ! युद्ध की विभीषिका में , तप्त - दग्ध , पीड़ित , लहू चूसते ये बाणोँ का , सघन आवरण , तन का रोम रोम - घायल किए ! ये कैसा क्षण है ! " धर्म -राज , रथ से उतर के , मौन खड़े हैं , रूक गया है युद्ध , रवि - अस्ताचलगामी ! आ रहे सभी बांधव , धनुर्धर इसी दिशा में , अश्रु अंजलि देने , विकल , दुःख क़तर , तप्त ह्रदय समेटे । [ अर्जुन ] " पितामह ! प्रणाम ! क्षमा करें ! धिक् - धिक्कार है !" गांडीव को उतार, अश्रु पूरित नेत्रों से करता प्रणाम , धरा पर झुक गया पार्थ का पुरुषार्थ , हताश , हारा तन - मन , मन मंथन कुरुक्षेत्र के रणाँगण में ! [ भीष्म पितामह ] " आओ पुत्र ! दो शिरस्त्राण, मेरा सर ऊंचा करो !" [ अर्जुन ] " जो आज्ञा तात ! " कह , पाँच तीरों से उठाया शीश [ भीष्म ] " प्यास लगी है पुत्र , पिला दो जल मुझे " फ़िर आज्ञा हुई , निशब्द अर्जुन ने शर संधान से , गंगा प्रकट की ! [ श्री कृष्ण ] " हे , वीर गंगा -पुत्र ! जय शांतनु - नंदन की ! सुनो , वीर पांडव , " इच्छा - मृत्यु", इनका वरदान है ! अब उत्तरायण की करेंगें प्रतीक्षा , भीष्म यूँही , लेटे, बाण शैय्या पर , यूँही , पूर्णाहुति तक ! " कुरुक - शेत्र के रण मैदान का , ये भी एक सर्ग था !