शकेब जलाली
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शकेब जलाली / परिचय |
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- आके पत्थर तो मेरे सहन में दो-चार गिरे \ शकेब जलाली
- जाती है धूप उजले परों को समेट के \ शकेब जलाली
- मुरझा के काली झील में गिरते हुए भी देख \ शकेब जलाली
- फिर सुन रहा हूँ गुज़रे ज़माने की चाप को / शकेब जलाली
- पास रह के भी बोहत दूर हैं दोस्त / शकेब जलाली
- खामोशी बोल उठे, हर नज़र पैगाम हो जाये / शकेब जलाली
- गले मिला न कभी चाँद बख्त ऐसा था / शकेब जलाली
- वही झुकी हुई बेलें वही दरीचा था / शकेब जलाली
- लौ दे उठे वो हर्फ़-ए-तलब सोच रहे हैं / शकेब जलाली
- जहाँ तलक भी ये सेहरा दिखाई देता है / शकेब जलाली
- उतरीं अजीब रोशनियाँ रात ख़्वाब में / शकेब जलाली
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