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फिर उसी राहगुज़र पर शायद / फ़राज़

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फिर उसी राहगुज़र पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर शायद

जान पहचान से क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर कर शायद

मुन्तज़िर जिन के हम रहे तुम हो
मिल गये और हमसफ़र शायद

जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं "फ़राज़"
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद